Desk– भारत के 10 साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन पर देश में 7 दिन का राजकीय अशोक घोषित किया गया है, शनिवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा जिसमें परिवार के लोगों के साथ ही कई गणमान्य भी शामिल होंगे. विदेश के प्रधानमंत्री से पहले अधिकारी और राजनेता के रूप में कई अहम पदों को संभाला था.वे वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया था. मनमोहन सिंह 1991 से लगातार राज्यसभा के सदस्य रहे. भारत में आर्थिक सुधारो का उन्हें जनक माना जाता है.
आजादी के 75 साल पूरा होने के बाद देश की राजनीति जिस तरह से बदली है और कम से ज्यादा राजनेता दिखावे पर विश्वास करने लगे है. काम से ज्यादा प्रचार पर जोर दिया जा रहा है. अपने पावर का हनक दिखाने के लिए विभिन्न वजहों से हाई लेवल की सुरक्षा मांगी जा रही है, उसे माहौल में भी पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत मनमोहन सिंह का रहन-सहन और उनकी कार्यशाली अलग थी. उनके सादगी और ईमानदारी को लेकर किसी विपक्षी दल के नेता ने भी कभी सवाल उठाने की जहमत नहीं उठाई, हालांकि प्रधानमंत्रीत्व कल में उनके कई मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मनमोहन सिंह पर किसी तरह का आप विपक्षी दल के नेताओं ने भी नहीं लगाई. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गिनती पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की तरह लिया जाता है जिन्होंने हर समय देश की बेहतरी के लिए बिना किसी दिखावा के सादगी पूर्ण तरीके से अपनी जिम्मेवारी निभाई. उनके सादगी को लेकर पूर्व सुरक्षा अधिकारी ने अपने अनुभव शेयर किए हैं जिसमें कहा है कि मनमोहन सिंहको जब प्रधानमंत्री बनने के बाद बीएमडब्ल्यू कर में बैठने के लिए कहा गया तो उन्होंने सहज भाव से कहा था कि उनकी गाड़ी तो मारुति 800 है, वह उसी में सहज भाव से बैठना चाहते हैं पर सुरक्षा अधिकारी ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिहाज से बीएमडब्ल्यू कार की सवारी करना जरूरी बताया था. उन पर अक्सर विपक्षी दल आरोप लगाते थे कि वह विभिन्न मुद्दों पर बोलते ही नहीं है और उन्हें मनमोहन की जगह मौनमोहन की उपाधि दी थी, जिसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था, किसी मामले पर मौन साधना कई सवालों का जवाब दे देती है. मनमोहन सिंह के इस कार्य शैली का अब कोई दूसरा नेता तत्काल अभी देश में नहीं दिख रहा है. इसलिए उनके निधन के बाद देश को हुई क्षति को किसी भी रूप में पूरा करना संभव नहीं दिखता है. यही वजह है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी दलों के राजनेताओं मंत्रियों और अन्य वर्ग से जुड़े लोगों ने उनको यह निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए अपने अनुभव शेयर किए हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवनी की चर्चा करें तो उनका जन्म 26 सितंबर 1932 को पश्चिमी पंजाब के गाह में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है.देश के बंटवारे के वक्त उनका परिवार भारत चला आया था। मनमोहन सिंह ने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा हासिल की थी। इसके बाद वे कैम्ब्रिज चले गए थे। यहां से मनमोहन सिंह ऑक्सफोर्ड चले गए और वहां भी उच्च शिक्षा हासिल की थी। उन्हें ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि मिली हुई है।उन्होंने डॉ. पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक के रुप में सेवा दी थी.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1966-1969 के बीच संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए आर्थिक मामलों के अधिकारी के रूप में काम किया।1982 से 1985 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे।1985 में राजीव गांधी की सरकार में मनमोहन सिंह को योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उन्होंने 5 साल तक ये पद संभाला। साल 1990 में वह पीएम के आर्थिक सलाहकार बने।इसके बाद 1991 में मनमोहन सिंह का राजनीतिक करियर शुरू हुआ. वे पहली बार राज्यसभा सदस्य बने। वे पूर्व पीएम नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री बने थे। मनमोहन सिंह एक अक्टूबर, 1991 से 14 जून, 2019 तक लगातार पांच बार राज्यसभा के सदस्य रहे थे। इसके बाद वह 20 अगस्त, 2019 से 3 अप्रैल, 2024 तक फिर से राज्यसभा के सदस्य बने थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 1998 से 2004 तक सदन में नेता प्रतिपक्ष का भी पद संभाला था और फिर 2004 से 2014 तक लगातार दो टर्म 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में मनरेगा, सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून ले गए जिसे देश की आम अवाम के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.