हजारों आंखे हुई नम..सलामी के बीच पांच साल के बेटे ने दी विकास को मुखाग्नि..

abhishek raj

Gaya- बड़ी बड़ी मुसीबतों का सफलतापूर्वक सामना करने वाला विकास एक छोटी सी मुश्किल में फंस गया और 3 मार्च का दिन उसके लिए अपशकुन साबित हो गया. विकास को क्या पता था कि एक छोटी सी सड़क दुर्घटना उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला देगा,पर 5 दिनों तक जीवन और मौत के जंग में विकास अंततः हार गया।
7 मार्च का वह मनहूस दिन विकास और उसके पूरे परिवार के लिए अभिशाप बनकर आया।

बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा का धनी विकास का लालन-पालन और शिक्षा -दीक्षा गया के डेल्हा खरखुरा स हुई थी। इनके पिता कैलाश प्रसाद एक सीधे-साधे किसान है। इनके घर का चिराग था विकास। जिसके आज बुझ जाने से घर परिवार आंगन सब सुना हो गया। अपनी दो बहनों का इकलौता प्यारा भाई विकास का इस तरह अनायास चला जाना पूरे परिवार और समाज के लिए दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

 

 

आइए आपको बताते हैं कि विकास कौन था। विकास 11 साल पहले कोस्ट गार्ड के रूप में राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित हुआ था। हाल के दिनों में मैंगलोर में विकास की पोस्टिंग थी। 3 मार्च को अपने ड्यूटी से घर लौटने के क्रम में एक डिवाइडर से स्कूटी टकरा गई और विकास गिर पड़ा। 4 दिनों तक सर में गंभीर चोट होने की वजह से जीवन और मौत के बीच संघर्ष करता रहा , लेकिन अंततः 7 मार्च को उसकी मौत की खबर ने गया शहर के डेल्हा के खरखुरा में लोगों को स्तब्ध कर दिया। विकास का पार्थिव शरीर विशेष विमान से गया लाया गया।
राष्ट्र के लिए समर्पित मैंगलोर में कोस्ट गार्ड के पद पर तैनात विकास कुमार का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा घर लाया गया। उसके बाद हजारों की संख्या में विकास के चाहने वालों ने घर से लेकर विष्णुपद से श्मशान घाट तक विकास कुमार अमर रहे , भारत माता की जय के नारों के साथ विशाल के शव यात्रा में लोग शामिल हुए।

 

विष्णुपद श्मशान घाट पर सेना की टुकड़ी द्वारा कास्ट पोस्ट की मातमी धुन और 21 गोलियों की सलामी के बाद अग्नि को समर्पित कर दिया गया। वह पल अत्यंत मार्मिक था जिस वक्त कोस्ट गार्ड विकास कुमार का 5 वर्षीय नन्हा पुत्र मुखाग्नि दे रहा था। हजारों की संख्या में मौजूद लोगों की आंखें नम थी और पूरा माहौल गमगीन था। इस तरह अचानक विकास का चला जाना उनके चाहने वालों के लिए स्तब्ध कर देने वाली खबर थी।
अंतिम विदाई के वक्त कोस्ट गार्ड के कई अधिकारी और उनके मित्र के वक्त अपने कंधों पर श्मशान घाट तक पहुंचाया। लोग लगातार विकास कुमार अमर रहे और भारत माता की जय घोष लगाते रहे। फिर कुछ ही पलों के बाद चीता की लपटें धू-धू कर गगन चूमने लगी और इस तरह विकास पंचतत्व में विलीन हो गया। अब शेष उसकी यादें रह गई। घर परिवार वालों ने बताया कि विकास की इच्छा थी कि उसके बेटे और बेटी दोनों विकास की तरह ही राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित होगा। विकास अपने परिवार और आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। मित्रों और परिजन को सदैव राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करता रहता था।

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