जूनियर महिला एशिया कप में परचम लहराने वाली हॉकी खिलाड़ी मंजू चौरसिया का हुआ सम्मान
पान की गुमटी चलाने वाले की बेटी है मंजू...चक दे इंडिया फिल्म से मिली थी प्रेरणा
Desk- “महिला जूनियर हॉकी एशिया कप-2023” में विजयी परचम फहराने वाली सोनीपत की बेटी मंजू चौरसिया को अलग-अलग बैनर के तले सम्मानित किया जा रहा है।
बता दें कि मंजू चौरसिया के पिता पान की गुमटी चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं.आर्थिक रुप से कमजोर होने के बावजूद मंजू संघर्ष करते हुए हॉकी में बेहत प्रदर्शन कर रही है।मंजू का यह सफर आसान नहीं था, पर उसके जज्बे को दूसरे खिलाड़ी सलाम कर रहे हैं. क्योंकि जिस परिस्थितियों से निकलकर वह बड़ा खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है, वह काबिले तारीफ है। आर्थिक परिस्थितियां भी उसके हौसलों को डिगा नहीं सकी और वह उस क्षितिज पर पहुंची है जहां बड़े-बड़े प्रतिभा भी पहुंचने के लिए लालायित रहते हैं।बताते चलें कि मंजू चौरसिया ने अपनी प्रखर खेल प्रतिभा का परिचय देते हुए जापान में आयोजित महिला जूनियर हॉकी एशिया कप में विजयी परचम लहराने में अहम भूमिका अदा की है।
सोनीपत की ब्रह्म कॉलोनी निवासी मंजू चौरसिया के पिता वकील भगत कहते हैं कि वे मूलरूप से बिहार के रहने वाले हैं। वे साल 1984 में सोनीपत आकर रहने लगे थे। पान की गुमटी चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। परिवार की आर्थिक स्थित ज्यादा अच्छी नहीं है। बेटी मंजू को बचपन से ही खेलने का बेहद शौक रहा है।साल 2006 में जब वह पांचवीं कक्षा में थी , तब पहली बार हॉकी स्टीक थामी थी। उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हॉकी के प्रति उसका जुनून ऐसा था कि खाना तक छोड़ देती थी। यही नहीं बीमारी की हालत में भी मना करने के बावजूद हॉकी का अभ्यास करने के लिए मैदान पर जाती थी। उसके इसी जुनून ने आज उसे नई पहचान दिलाई है।
पिता वकील भगत ने कहा कि आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते उनसे जो बन पड़ा उन्होंने किया, लेकिन लाडली की इस उपलब्धि में सबसे बड़ा योगदान उनकी कोच प्रीतम सिवाच का है। प्रीतम सिवाच ने माता-पिता से ज्यादा साथ दिया है। वह हर परिस्थिति में उसके साथ खड़ी रहीं और उसे यहां तक पहुंचाया। लाडो को आज जो मुकाम मिला है वह कोच प्रीतम सिवाच के आशीर्वाद, उनके सिखाए गए गुर और योगदान का परिणाम है।
मंजू चौरसिया के जीवन में एक बड़े खिलाड़ी बनने की सपना तब जागी थी जब उसने फिल्म चक डे इंडिया पहली बार देखी थी। फिर वह पीछे मुड़कर नहीं देखी और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महिला हॉकी खेल में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है।
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