जिसकी जितनी आबादी,उसकी उतनी हिस्सेदारी – सांसद मनोज झा
PATNA- 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव को लेकर लालू- नीतीश ने बड़ा दाव खेला है. हिंदुत्व की राजनीति करने वाले बीजेपी को पटकनी देने के लिए नीतीश-लालू ने जातीय कार्ड खेला है.
जातीय गणना की रिपोर्ट जारी
इस कड़ी में बिहार में की गई जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार 63 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी बिहार में पिछड़े(OBC) और अति पिछड़ों(EBC) की है जबकि दलित समाज(SC) की आबादी 19 फ़ीसदी और सामान्य वर्ग यानी सवर्ण की जनसंख्या करीब 15.2 फ़ीसदी है. इस रिपोर्ट कार्ड के जारी होने के बाद एक तरफ जहां लालू नीतीश और तेजस्वी जैसे नेता उत्साहित हैं.
भ्रम की स्थिति में बीजेपी
इस रिपोर्ट पर विचार विमर्श करने के लिए नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुला ली है वहीं धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी इस मुद्दे पर भ्रम की स्थिति में दिख रही है एक तरफ बीजेपी के नेता इस रिपोर्ट का स्वागत कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि जातीय गणना करने में उनके दल की भी सहमति थी दूसरी तरफ ये नेता इस रिपोर्ट पर भी सवाल उठा रहे हैं ।सुशील मोदी और सम्राट चौधरी से लेकर गिरिराज सिंह तक ने इस रिपोर्ट को लेकर लालू नीतीश एवं तेजस्वी पर हमला बोला है.
नीतीश ने बुलाई सर्वदलीय बैठक
इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ताधारी एवं विपक्ष की सभी 9 दलों की बैठक मंगलवार के दोपहर में बुलाई है. मीडिया से बात करते नीतीश कुमार ने कहा है कि इस बैठक में जातीय गणना की रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे किस रूप में नई योजना बना सकती है. इसकी रणनीति पर चर्चा होगी.
आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग
वहीं दूसरी ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी आरजेडी इस जातीय गणना के बहाने उस स्लोगन को दोहरा रही है जिसमें कहा गया है कि ‘जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी भागीदारी’. राजद ने बड़े ही चालाकी से इस मुद्दे को लेकर अपने राज्यसभा सांसद मनोज झा को आगे किया. तेजस्वी यादव के साथ मीडिया के समक्ष आए मनोज झा ने खुले रूप से कहा कि गांधी जयंती के दिन जातीय गणना की रिपोर्ट जारी करना एक ऐतिहासिक कदम है और अब अब समय आ गया है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उसी हिसाब से हिस्सेदारी मिलनी चाहिए और इसमें नफा नुकसान की बात नहीं करनी चाहिए.
मांझी ने भी आरजेडी की मांग का समर्थन किया
इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी अपनी बात रखी है और उन्होंने कहा है कि राज्य की बड़ी आबादी के साथ लगातार भेदभाव हो रहा है इसलिए अब समय आ गया है की आबादी के अनुसार ही सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी दी जाए. मांझी के इस बयान का बीजेपी के नेता शायद ही पूरी तरह से समर्थन कर पाए.
फिर से मंडल कमंडल की राजनीति
बताते चलो की 90 के दशक में मंडल यानी जाति और कमंडल यानी धर्म की राजनीति खूब हुई थी। बीपी सिंह की सरकार द्वारा ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण नौकरी में घोषित किए जाने के बाद देश में काफी बवाल हुआ था. और बीजेपी ने उस समय बीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसकी वजह से उसे पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है. हालांकि बीजेपी हमेशा इसका खंडन करती रही.
बीजेपी ने सवर्णो को दिया था आरक्षण
बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2018 में बीजेपी ने जातीय कार्ड खेलते हुए स्वर्ण समाज के आर्थिक रूप से पिछले छात्र-छात्राओं को नौकरी में 10 फीस दी का आरक्षण दिया था जिसका फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को मिला और सावन समाज के अधिकांश वोटरों ने बीजेपी का समर्थन किया और बीजेपी 2014 से भी ज्यादा सीट जीतकर मोदी के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनाई.
अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों की इंडिया गठबंधन पिछड़े और अति पिछड़े की 60 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या की राजनीति कर बीजेपी को परास्त करना चाहती हुए।इसके लिए बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की गयी है. अब बात हार की जातीय गणना के मॉडल पर पूरे देश में जातीय जनगणना करने की मांग तेज की जायेगी इसे चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा.
2024 के चुनाव में बड़ा मुद्दा
लालू नीतीश एवं INDIA गठबंधन में शामिल अधिकांश दलों के नेताओं की सोच है कि बीजेपी के हिंदुत्व के एजेडें से जाति के एजेंडे से अपना समर्थन बढ़ा सकेगी।लालू और नीतीश 2015 का बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम को उदाहरण के रुप में ले रहे हैं,जहां आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के एक बयान को लालू-नीतीश ने लपक लिया था और अपनी जीत मान रही बीजेपी अंत समय में बुरी तरह हार गई थी।
राहुल गांधी भी जातीय गणना का मुद्दा उठा रहे
लालू-नीतीश को उम्मीद है कि इस मुद्दे के जरिए वो बीजेपी को नुकसान कर सकेगी। यही वजह है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य नेता भी पूरे देश में जातीय गणना करने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के अधिकांश नेताओं ने महिला आरक्षण में भी पिछला वर्ग के लिए अलग से आरक्षण देने की मांग संसद में उठाई थी.
बीजेपी को खोजनी होगी काट
वहीं जातीय गणना के मुद्दे पर भाजपा हमेशा से भ्रम की स्थिति में रही है वह ना तो इसको पूरी तरह से स्वीकार कर पा रही है और ना ही इसका विरोध कर पा रही। अब जबकि लालू नीतीश ने इस जातीय कार्ड को 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खेला है तो बीजेपी भी अब इसकी काट के लिए कुछ ना कुछ ऐसा कदम जरूर उठेगी जिससे कि पिछड़ी जातियों का विश्वास बहाल रख सके.
रिपोर्ट के आंकड़े
बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय गणना की रिपोर्ट पर गौर करें तो बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है।इनमें हिंदू समुदाय की आबादी 81.9%, मुस्लिम की आबादी 17.7%, ईसाई 0.05%, सिख- 0.01%, बौद्ध 0.08%, जैन 0.0096% और अन्य धर्म के लोगों की आबादी 0.12% है।यानी कुल 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी में 10.07 करोड़ हिंदू और मुस्लिम की आबादी 2.31 करोड़ है।
वहीं जातीय समूह की बात करें तो अत्यंत पिछड़ा- 36 फीसदी, पिछड़ा वर्ग- 27 फीसदी, अनुसूचित जाति- 19 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.68 फीसदी है।सामान्य वर्ग की कुल आबादी 15.2 फीसदी है.
215 जातियों की गणना
जातीय गणना के मुताबिक, बिहार में कुल 215 जातियां हैं,जिसमें सबसे ज्यादा आबादी 14 फीसदी यादव की है। कायस्थ- 0.60 फीसदी, कुर्मी- 2.87 फीसदी, कुशवाहा- 4.21 फीसदी, चंद्रवंशी- 1.64 फीसदी, धानुक- 2.13 फीसदी, धोबी- 0.83 फीसदी, नाई- 1.59 फीसदी, नोनिया- 1.91, कुम्हार- 1.40, पासी- 0.98, बढ़ई- 1.45, ब्राह्मण- 3.65, भूमिहार- 2.86, मल्लाह- 2.60, माली- 0.26, मुसहर- 3.08, राजपूत- 3.45, लोहार- 0.15, सोनार- 0.68, हलवाई- 0.60 फीसदी है।