Desk -बेगूसराय के बीहट क़े निवासी और बिहार कैडर क़े IPS विकास वैभव अपने पुलिस विभाग क़े कामकाज क़े साथ ही LetsInspireBihar अभियान के तहत पूरे बिहार का दौरा कर रहे हैं और युवाओं को सकारात्मक दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं. इस बीच उनकी राजनीति में भी आने की चर्चा आए दिन होते रहती है. इसको लेकर उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर एक बड़ा आलेख लिखा है जिसमें उन्होंने इस अभियान को चलाने का उद्देश्य बताया है. उन्होंने दिल्ली के अपने एक मित्र की सलाह की चर्चा करते हुए कहा है कि उन्हें कई मित्रों द्वारा राजनीतिक दल ज्वाइन करने की बात कही जा रही है पर उन्होंने इसे नाकरते हुए अपने इस अभियान को जारी रखने की बात कही है. उन्हें उम्मीद है कि 2047 तक विकसित भारत में विकसित बिहार का भी एक अहम रोल होगा.
विकास वैभव ने अपने आलेख में लिखा कि –
मित्रों, कुछ दिन पूर्व दिल्ली में था । भ्रमण के क्रम में एक परिचित ने बड़े स्नेह से पूछा कि “आप क्यों अपने अवकाश के दिन बिहार के लिए बर्बाद करते रहते हो और 3 वर्ष से अधिक से हर जिले में घूम रहे हो ? यदि चुनाव लड़ना है तो केवल बेगूसराय और अपने क्षेत्रों में घूमते, पार्टियों के बड़े नेताओं के चक्कर लगाते, उनसे घनिष्ठ संबंध बनाते, सफलता तुरंत मिल जाती, भला बिहार को प्रेरित करने में क्यों उर्जा लगाना ? आपका उद्देश्य क्या है ? बताइए, भला क्या परिवर्तन हुआ है बिहार में #LetsInspireBihar के 3 वर्ष बीतने पर भी ?”
बात यहीं नहीं रूकी ! उन्होंने राय भी दी कि “आप जान लीजिए कि बिहार में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला । बिहार जातिवाद की भयानक समस्या से ग्रसित है । वहाँ लोग आपके नीयत को नहीं, केवल आपकी जाति को ही देखेंगे और तदनुसार आपको भी समझेंगे । यदि आपको यह समझ नहीं आता तो उनसे सीखिए जो आपके बाद बिहार बदलने के लिए एक और अभियान शुरू किए थे परंतु तुरंत ही बिहार की जमीनी सच्चाई समझ गए और उन्होंने राजनीति का मार्ग चुना और अब जाति-संप्रदाय के नाम पर ही बिहार को बांटकर टिकट देने से लेकर पार्टी के पदों तक को भरने की बात करते हैं । यह तो वो भी जानते हैं कि ऐसा करने से बिहार नहीं बदलेगा, परंतु वह प्रैक्टिकल हो गए हैं ! आप भी जान लीजिए कि राजनीति से ही परिवर्तन संभव है, आपकी यात्राओं और सोए हुए समाज को जगाने के प्रयासों से नहीं । आप भी प्रैक्टिकल बन जाइए, और सही दिशा में उर्जा लगाइए । मैं तो 30 वर्ष पहले ही बिहार छोड़ चुका हूँ और जानता हूँ कि वहाँ कुछ नहीं बदलेगा । मैं आपको राय इसीलिए दे रहा हूँ चूंकि जब आपको इतना परिश्रम करते सोशल मीडिया पर देखता रहा हूँ तो मुझे लगता है कि क्यों उर्जा को व्यर्थ कर रहे, आज जब मिले तो लगा कि आपको अपने मन की बात कह दूँ, कृपया इसे अन्यथा मत लीजिएगा ।”
मैं उन्हें ध्यान से सुनता रहा और जब वह रूके तब मैंने कहा “भाईसाहब, मैं अत्यंत आशावादी व्यक्ति हूँ । मुझे परिणाम की चिंता नहीं है परंतु यह पूर्ण विश्वास है कि जिस मिशन में मैं लगा हूँ, वह अवश्य सफल होगा । आप मेरे वर्तमान को तो देख पा रहे हैं परंतु यहाँ तक मैं कैसे पहुंचा हूँ और आज ऐसा क्यों कर रहा हूँ यह आप नहीं समझ पा रहे हैं इसीलिए ऐसा प्रश्न कर रहे हैं । ऐसे प्रश्न करने भी चाहिए, चूंकि ऐसे प्रश्नों से ही तो समाधान का मार्ग निकलेगा । मैंने अनेक असंभव परिवर्तनों को अपने संक्षिप्त जीवनकाल में ही साक्षात संभव होते हुए देखा है और मेरे प्रयासों के पीछे मेरे अडिग विश्वास के वही अनुभव आधार हैं ।”
मैंने उन्हें बताया कि “आज से 16 वर्ष पूर्व 2008 के अगस्त में मैं रोहतास का एसपी बना था । उस समय रोहतास उग्रवाद से ग्रसित था और प्रतिवर्ष हिंसा में अनेक पुलिसकर्मी शहीद हो रहे थे । वर्ष 2002 में तत्कालीन डीएफओ और वर्ष 2006 में डीएसपी भी शहीद हुए थे । आमतौर पर पुलिस द्वारा उग्रवादियों की गिरफ्तारी तथा मुठभेड़ों की संख्या को ही सफलता का मानक माना जाता था । 3, सितम्बर, 2008 को सोली में 6 इंच की दूरी से मेरे बगल से भी सैंकड़ों गोलियाँ निकली थीं और उसके पश्चात भी अनेक मुठभेड़ हुए थे परंतु अपनी बृहत दृष्टि के कारण मैं यह समझ गया था कि हिंसा को प्रतिहिंसा से नियंत्रित नहीं किया जा सकता । पहली नजदीकी मुठभेड़ के बाद ही मेरे सभी शुभचिंतकों ने मुझे सचेत करने का हरसंभव प्रयास किया था और कहा था कि मुझे अपने प्राणों की तथा परिवार की चिंता करनी चाहिए और उग्रवादियों से दूरी बनाकर रखना चाहिए । यदि मैडल जीतना उद्देश्य था तो अपराधियों के विरुद्ध ही सघन कार्यवाई करनी चाहिए चूंकि उसमें खतरा कम था और प्रसिद्धि भी व्याप्त थी । परंतु मैं तब भी प्रैक्टिकल नहीं था, मेरी बृहत दृष्टि तो यही कहती थी कि मैं तो निमित्त मात्र ही हूँ, बिहार में परिवर्तन हेतु योगदान समर्पित करने आया हूँ और इसीलिए मार्ग की चुनौतियों का पूर्ण बल एवं आशावादिता सहित सामना करना है । जर्मनी में मल्टीनेशनल कंपनी और भारत की बड़ी सोफ्टवेयर कंपनी के ऑफर त्यागकर जब भारतीय पुलिस सेवा में योगदान दे रहा था तब बिहार कैडर आवंटित हो चुका था और उसके बाद भारतीय विदेश सेवा के लिए भी चयनित हुआ था परंतु मन में यही संकल्प था कि बिहार के परिवर्तन तथा उज्ज्वलतम भविष्य निर्माण में मेरा योगदान होना चाहिए । अतः बगहा में असंभव माने जाने वाले परिवर्तन को संभव कर सका और जब रोहतास पहुंचा तब भी किसी चुनौती से नहीं डरा, समस्या के पूर्ण समाधान पर ही चिंतन करने लगा ।
ऐसे में जब 24 सितंबर, 2008 को हुए द्वितीय मुठभेड़ में लैंडलाइन ब्लास्ट हुआ और सैप जवान कन्हैया सिंह शहीद हुए, तब संकल्प और सुदृढ़ ही हुआ और 4 अक्टूबर, 2008 से प्रारंभ हुए ऑपरेशन विध्वंस में सहस्त्राधिक जवानों के साथ मैंने पहाड़ी ग्रामों में पैदल चलना और अस्थाई कैंपों में लगातार रात्रि विश्राम करना प्रारंभ कर दिया । इसी क्रम में जब आदिवासियों से बातें होने लगी तब मैंने पाया कि चाहे खरवार हों या उरांव, सभी अपने पूर्वजों पर बहुत गर्व करते थे और कहते थे कि उनके यशस्वी पूर्वजों ने ही प्राचीन काल में रोहतास दुर्ग को निर्मित किया था जिसे मुगल भी अभेद्य मानते थे और जिसके लिए उनके लेखक फरिश्ता ने लिखा था कि उसे बल से नहीं, केवल छल से ही जीता जा सकता था । तब पहाड़ी छापेमारी अभियान के साथ-साथ मैंने सोन महोत्सव नामक अभियान प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य था क्षेत्र के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करना और उसका प्रतीक बना वही रोहतासगढ़ दुर्ग । जिले के सभी लोगों से जब अभियान में जुड़ने का आह्वान किया गया तब परिणाम अत्यंत सकारात्मक हुए और अनेक शिविरों में आदिवासियों के साथ न केवल सीधा संवाद हुआ अपितु उनके इतिहास पर चर्चा के साथ-साथ कंबल एवं वस्त्र वितरण तथा निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों का भी आयोजन हुआ ।
इसी परिवर्तित वातावरण में 26 जनवरी, 2009 को रोहतास दुर्ग पर स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार तिरंगा लहराया और फिर अप्रैल, 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान धनसा ग्राम में बीएसएफ कैंप पर हमले के बाद भी केवल 3 पहाड़ी भवनों में अवस्थित 6 बूथों के लिए 16 कंपनियों के साथ अभियान चलाकर शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराया गया । इसके बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों में संवाद और कार्यक्रमों का क्रम गतिमान रहा ।
इस बीच में यह सुनिश्चित किया गया कि उग्रवाद से संबंधित कांडों में कोई निर्दोष व्यक्ति नहीं पकड़े जाएं । पुराने कांडों की समीक्षा करते हुए अनेक निर्दोषों को अनुसंधान के क्रम में ही दोषमुक्त कर दिया गया । गिरफ्तारियों कि संख्या में भारी कमी अवश्य आई परंतु क्षेत्र में विश्वास बढ़ा और बरामदगियों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई ।
घटनाओं में कमी आने पर तब पुलिस की कार्यशैली के संदर्भ में अनेक पत्रकारों द्वारा समर्थन में आलेख भी लिखे जाने लगे परंतु उग्रवादी भौगोलिक परिस्थितियों का लाभ लेकर सक्रिय ही बने हुए थे और बड़ी घटनाओं हेतु प्रयासरत रहते थे । ऐसे वातावरण में जब छिटपुट घटनाएं भी होतीं, तब एक बड़ा वर्ग पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह भी उठाने लगता था । मैंने तब यही अनुभव किया कि नए प्रयोगों को समाज तुरंत स्वीकार नहीं करता और इसीलिए यदि अंतर्मन की भावना शुद्ध हो तो प्रतिक्रियाओं की चिंता छोड़कर केवल अपना कर्म करना चाहिए ।”
मैंने उनसे कहा कि तब भी लोग ऐसे ही प्रश्न करते थे जैसा आज वह कर रहे थे । किसी को आने वाले बड़े परिवर्तन का आभास ही नहीं था । मैं अपना कार्य करता रहा । जब कुछ पत्रकार कहने लगे कि गिरफ्तारियों में कमी के कारण कहीं उग्रवाद बढ़ न जाए और मेरी रणनीति पर ही अनेक प्रश्न करने लगे तब भी बिना प्रभावित हुए वर्ष 2010 में मैंने एक अलग पहल पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया था और रोहतास दुर्ग पर पर्यटन के विकास के लिए पर्यटकों को आमंत्रित करने के लिए न केवल पूरे जिले के प्रमुख स्थानों पर बड़े होर्डिंग लगाकर प्रचार-प्रसार आरंभ कर दिया अपितु 80 आदिवासी युवाओं को टूरिस्ट गाइड के रूप में विशेष रुप से प्रशिक्षित करना भी प्रारंभ कर दिया । ये सब होता देखकर अनेक व्यक्ति हास्यास्पद टिपण्णी भी करते थे कि उग्रवादियों को गिरफ्तार नहीं करके पर्यटकों को वहाँ आमंत्रित किया जा रहा है जहाँ प्राणों पर संकट के भय से कोई जा ही नहीं सकता । तब मैंने कुछ व्यक्तियों से कहा था कि “आप प्रैक्टिकली सोचते हैं और वर्तमान को ही देखते हैं । मैं तो भविष्य को देखता हूँ और आप देखिएगा कि टूरिस्ट गाइडों के कारण क्षेत्र की दृष्टि परिवर्तित हो जाएगी और लोग देखेंगे कि पर्यटन एवं विकास की असीम संभावनाएं होते हुए भी उग्रवादियों की गतिविधियों के कारण क्षेत्र का विकास अवरूद्ध है । ऐसे में उग्रवादियों का विरोध प्रारंभ होना स्वाभाविक होगा । ओर जैसा किसी ने कभी सोचा नहीं था, वैसा ही हुआ । उग्रवादियों का ऐसा विरोध हुआ जिसके कारण सभी को शस्त्रों सहित आत्मसमर्पण हेतु बाध्य होना पड़ा और रोहतास अतिशीघ्र उग्रवाद मुक्त हो गया । आज भी भौगोलिक परिस्थिति वही है परंतु उग्रवादी तत्व स्वतः विलुप्त हो गए । बगहा की भांति रोहतास भी एक ऐसे बड़े परिवर्तन का साक्षी है जिसे कभी लोग असंभव मानते थे ।”
मैंने उन्हें आगे समझाया कि विरासत की दृष्टि एवं निस्वार्थ सकारात्मक प्रयास के समक्ष बगहा में अपराध को और रोहतास में उग्रवाद को विलुप्त होते मैंने स्वयं अनुभव किया है और अतः जानता हूँ कि यदि बिहार भी समेकित रूप में जागृत हो गया तो निश्चित ही बिहार के विकास के अवरोधक तत्व जो अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु उसे जाति-संप्रदाय के बंधनों में ही बांधकर रखना चाहते हैं, वह भी स्वतः विलुप्त हो जाएंगे । इसीलिए मैं अपने प्रयास में पूर्ण उर्जा सहित लगा हुआ हूँ और वह देख पा रहा हूँ जो वर्तमान में उन्हें प्रतीत नहीं हो रहा ।
मैंने आगे उनसे कहा कि चूंकि उन्होंने मुझसे पूछा है कि आखिर 3 वर्षों में क्या बदला है तो मैं यह बता देना चाहता हूँ कि “मैं अत्यंत आशान्वित हूँ चूंकि आज अकेला नहीं हूँ और 1,05,000+ सहयात्रियों के साथ सीधे रुप से जुड़ा हूँ जो बिहार को बदलते देखना चाहते हैं और जिनके निस्वार्थ योगदान के कारण ही आज अभियान धीरे-धीरे एक जन-अभियान का स्वरूप ग्रहण करने लगा है । परिस्थितियों में परिवर्तन हेतु एक स्वप्न की आवश्यकता होती है, परंतु परिवर्तन तब ही संभव होता है जब उस स्वप्न का आधार स्पष्ट हो और अंतर्मन की भावना शुद्ध हो । बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य के स्वप्न का आधार तो हमारा ही अपना गौरवशाली इतिहास है चूंकि वंशज तो हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के हैं जिनमे व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़कर उस अखंड भारत के साम्राज्य को स्थापित करने की क्षमता और ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज की कल्पना के पूर्व ही ऐसे विश्वविद्यालयों को स्थापित करने की क्षमता तब थी जब न आज की भांति विकसित मार्ग थे, न उन्नत सूचना तंत्र और न आधुनिक प्रौद्योगिकी । आज आधुनिक संसाधनों के साथ भला क्या असंभव है ।
बिहार को बदलने के लिए हमें बिहार की उस मूल भावना को समझना होगा जिसके कारण हम नव सर्जन करने में सक्षम हो सके । बिहार ही वेदांत की धरती रही है जिसकी बृहत दृष्टि में हर व्यक्ति ही नहीं अपितु हर आत्मा में भी उसी परमतत्व के अंश को देखने की कल्पना थी और कोई भेदभाव नहीं था । जातियाँ प्राचीन बिहार में अवश्य रहीं परंतु व्यक्ति को व्यक्ति से तोड़ने वाला जातिवाद यदि हावी रहा होता तो मगध में सबसे निम्न वर्ग से आने वाले नंद वंश का कभी उदय नहीं होता और न आचार्य चाणक्य भी चंद्रगुप्त की क्षमता को आंक पाते । यह व्यक्ति के सम्मान तथा व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ने की हमारे पूर्वजों की क्षमता ही थी जिसके कारण बिना भेदभाव के चुने गए 7707 गणराजाओं के द्वारा वैशाली के संथागार में विश्व के प्रथम गणराज्य को स्थापित किया जा सका ।
यदि कालांतर में हमारा अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ तो इसका कारण कहीं न कहीं समय के साथ लघुवादों अथवा अतिवादों से ग्रसित होना ही रहा है । अभियान का उद्देश्य इतिहास के संदेश को बिहार के हर व्यक्ति तक पहुँचाना है ताकि हम अपनी उर्जा सही दिशा में लगाएं । जो सक्षम हैं उन्हें उनके सहयोग के लिए तत्पर होना होगा जिन्हें उसकी वास्तविक आवश्यकता है, तब ही तो समतामूलक समाज का निर्माण संभव हो सकेगा ।
अभियान के अंतर्गत बीते 3 वर्षों में बिहार के सभी जिलों में, भारत के प्रमुख महानगरों में तथा विदेशों में भी 1400+ कार्यक्रम आयोजित हुए हैं तथा बेगूसराय में 10 दिसंबर, 2023 को नमस्ते बिहार प्रथम बृहत जन संवाद का आयोजन किया गया जिसमें 50,000+ व्यक्ति सम्मिलित हुए । आगे 1 दिसंबर, 2024 को सासाराम (रोहतास) में तृतीय, 8 दिसंबर, 2024 को छपरा (सारण) में चतुर्थ तथा 9 फरवरी, 2025 को हाजीपुर (वैशाली) में पंचम बृहत जन संवाद मुक्ताकाश में निर्धारित है । चिकित्सकों द्वारा स्थापित जीवक अध्याय द्वारा आयोजित 200 से अधिक निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों में 30,000+ वंचित व्यक्ति लाभान्वित हो चुके हैं । महिलाओं द्वारा स्थापित गार्गी अध्याय द्वारा आज बिहार के 8 जिलों में वंचित विद्यार्थियों के लिए 17 गार्गी पाठशाला केन्द्रों पर निःशुल्क शिक्षादान समर्पित किया जा रहा है तथा वंचित महिलाओं के स्वरोजगार हेतु गार्गी कला कौशल केंद्रों तथा गार्गी कृत्या के माध्यमों से उत्कृष्ट प्रयास किया जा रहा है । सिवान, गया, पटना, औरंगाबाद सहित अनेक जिलों में निःशुल्क शिक्षा केंद्रों में वंचितों के हितार्थ नित्य शिक्षादान समर्पित किया जा रहा है ।
अभियान के अंतर्गत संकल्पना यही है कि उद्यमिता की व्यापक क्रांति से ही हम मिलकर 2047 तक विकसित भारत में एक ऐसे विकसित बिहार का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य अथवा रोजगार के लिए किसी को अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं हो, और इसके लिए आवश्यक होगा कि जाति-संप्रदाय, लिंगभेद, विचारधाराओं के मतभेद आदि से परे उठकर हम संगठित रूप में सकारात्मक योगदान करें । बिहार के बाहर निवास कर रहे मूल बिहारवासियों को भी अपने जिलों में उद्यमिता के विकास के लिए प्रकल्पों की स्थापना के साथ-साथ स्टार्ट-अपों की स्थापना हेतु प्रयासरत युवाओं को मार्गदर्शन के साथ आवश्यक हरसंभव सहयोग प्रदान करने हेतु मैं आह्वान करता रहा हूँ । अभियान के अंतर्गत 2028 तक बिहार के हर जिले में कम से कम 5 ऐसे सफल स्टार्ट-अप्स की स्थापना का लक्ष्य है जिनमें कम से कम 100 व्यक्तियों को रोजगार मिलता हो । इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा । केवल 5 ऐसे स्टार्ट-अप स्थापित करने से बिहार तुरंत नहीं बदलेगा परंतु निश्चित ही एक बदलते बिहार का बीजारोपण हम कर देंगे जो धीरे-धीरे एक ऐसे वट वृक्ष का स्वरूप ग्रहण करेगा, जो 2047 तक वांछित लक्ष्य तक निश्चित हमें पहुंचा देगा ।”
यह सब सुनने पर वह कुछ संतुष्ट अवश्य हुए परंतु तब भी नहीं रूके और बोले “आपकी बातें तो ठीक हैं पर क्यों न आप राजनीतिक परिवर्तन का प्रयास पहले करें जिससे नीति निर्धारण के साथ तीव्र गति से बिहार में परिवर्तन संभव हो सके ?”
तब मैंने उनसे कहा कि “मैंने अनेक अवसरों पर यह स्पष्ट कहा है कि मैं राजनीति को राष्ट्र निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण मानता हूँ और यह चाहता हूँ कि अच्छे, योग्य, निस्वार्थ, राष्ट्र के प्रति संकल्पित एवं इमानदार व्यक्तियों को राजनीति में अवश्य आना चाहिए और आने का हरसंभव प्रयास भी करना चाहिए । निश्चित ही अच्छे लोगों के राजनीति में आने से एक बड़ा परिवर्तन द्रष्टव्य होगा परंतु मेरा अभियान बहुत बड़े उद्देश्य के साथ गतिमान है और किसी क्षणिक राजनीतिक परिवर्तन के उद्देश्य से नहीं है । मेरा लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत में विकसित बिहार का है जिसमें शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए किसी को भी अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं हो ।”
मैंने उन्हें उदाहरणों के साथ समझाया कि “राजनीतिक अभियानों की दृष्टि केवल सत्ता परिवर्तन तक ही सीमित होती है । मेरा अभियान उस व्यवस्था को परिवर्तित करना चाहता है जिसके कारण समाज में परस्पर संघर्ष उत्पन्न होता है और राजनीति की दिशा को भी जाति-संप्रदाय आदि लघुवादी संघर्षों में उलझाकर राष्ट्रनिर्माण की गति को अवरूद्ध कर देता है । मैं राजनीतिक परिवर्तन से बड़े परिवर्तन की तथा बिहार के प्राचीन बौद्धिक विरासत को समझते हुए और उसकी क्षमताओं पर विचारण के पश्चात तथा बगहा, रोहतास आदि जिलों में सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के पश्चात उस बृहत परिवर्तन की बात कर रहा हूँ जो केवल और केवल सामाजिक संवाद एवं योगदान से ही संभव हो सकता है । अतः समाज के हर वर्ग के जुड़ने के निमित्त आवाह्न हेतु अवकाश के हर समय में नित्य संवाद कर रहा हूँ ।”
उनकी दुविधा को और स्पष्ट करने के निमित्त मैंने उनसे पूछा कि बिहार की राजनीति का आधार आपको क्या प्रतीत होता है । कुछ समय सोचकर उन्होंने कहा “पार्टी भले कोई सी भी हो सभी जाति एवं संप्रदाय के आधार पर ही उम्मीदवारों का चयन करते हैं और भला क्यों न करें जब जनता द्वारा मतदान भी उसी आधार पर होता है। योग्य व्यक्ति की कद्र समाज कहाँ करता है ।” तब मैंने उनसे पूछा कि “आप बताईए कि यदि ऐसा ही चलता रहा और समाज में संघर्ष बढ़ता रहा तो बिहार बदलेगा क्या?” जिसके उत्तर में उन्होंने कहा कि “नहीं, जब तक जाति-संप्रदाय के बंधनों से मुक्त होकर योग्य व्यक्ति समाज को दिशा नहीं देंगे, बड़ा परिवर्तन नहीं हो सकता ।” तब मैंने उनसे पूछा कि “वर्तमान परिस्थितियों में यदि मेरे जैसे कुछ व्यक्ति राजनीति में आ भी जाएंगे परंतु समाज में परिवर्तन नहीं होगा तो बिहार बदलेगा क्या?”
वह कुछ समय तक सोचने के पश्चात बोले कि “आपने बड़ी स्पष्टता के साथ मेरा हर भ्रम दूर कर दिया है । जब तक हम बृहत स्तर पर सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन नहीं करेंगे तब तक किसी भी राजनीतिक परिवर्तन से बिहार नहीं बदलेगा । बिहार तब ही बदल सकेगा जब समाज जागृत होगा और जाति-संप्रदाय के बंधनों से मुक्त होगा । यह एक लंबी प्रक्रिया है परंतु बिहार के इतिहास को देखते हुए यह संभव प्रतीत होता है । मेरी निराशा मिट चुकी है और मैं भी आपके अभियान में आपके साथ हूँ तथा हर सामाजिक योगदान हेतु तत्पर हूँ । मैं आगामी दोनों नमस्ते बिहार कार्यक्रमों में तथा दिल्ली के भारत मंडपम वाले कार्यक्रम में भी उपस्थित रहूंगा ।”
मैंने तब उनसे कहा कि अभियान के अंतर्गत 2028 तक बिहार के हर पंचायत में अध्याय स्थापित करते हुए हर ग्राम-नगर के जन-जन तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित है जिसमें हर व्यक्ति से सकारात्मक योगदान की अपेक्षा है । मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि भले ही हमारी सामुहिक यात्रा दीर्घकालिक होगी परंतु 2047 तक विकसित भारत में एक विकसित बिहार का निर्माण अवश्य करेगी । यात्रा गतिमान है !