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जब किसी मामले में बेकसूर के खिलाफ शिकायत की जाती है और आरोपी के द्वारा विरोध किया जाता है तो अक्सर यह कहा जाता है कि पुलिस की जांच और पड़ताल में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. बिहार में सरकार के मुखिया नीतीश कुमार और उनके मंत्री एवं नेता भी अक्सर यह दोहराते हैं कि यहां की पुलिस ना तो किसी को फसाती है ना किसी को बचाती है,पर पुलिस की जांच पड़ताल में कैसे फर्जीवाड़ा होता है और सब कुछ जानते हुए भी पुलिस के जांच अधिकारी निर्दोष को कोर्ट से सजा दिलवा देते हैं,इसका एक उदाहरण बिहार के दरभंगा जिले के एक केस से लिया जा सकता है जिसमें एक युवक के खिलाफ फर्जी पोक्सो एक्ट में शिकायत दर्ज कराते हुए उसे 20 साल की सजा दिलवा दी गई. केस का जांच पदाधिकारी भी (IO) भी जानता था, कि जिस युवक के खिलाफ आरोप लगाया गया है वह निर्दोष है लेकिन वह अपने सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर उस निर्दोष युवक के खिलाफ चार्जशीट दायर किया और फिर कोर्ट में उसके खिलाफ फर्जी गवाही कराई, नाबालिक के साथ दुष्कर्म और गर्भपात का निजी क्लीनिक का फर्जी सर्टिफिकेट लगाया और युवक को 20 साल की सजा हो गई, पर हाईकोर्ट में शिकायतकर्ता एवं पुलिस का यह फर्जीवाड़ा सामने आ गया और इस मामले में 20 साल सजा पाए युवक को दोष मुक्त कर दिया गया हालांकि इस दौरान उसे 4 साल जेल काटने पड़ी.
यह मामला दरभंगा जिले के बहेरा थाना के मौजमपुर गांव की है. यहां की एक नाबालिक दिनेश नामक एक युवक से प्रेम करती थी, इसको लेकर गांव के कुछ दबंगों ने पंचायत बुलाई और नाबालिक लड़की की शादी कहीं और करने का तय किया, इस बीच प्रेमी दिनेश के पिता से 6 लाख रूपये की डिमांड की गई, और उसे बचाने के लिए एक बड़ी साजिश रची, प्रेमी दिनेश के दोस्त मुकेश के खिलाफ थाने में शिकायत की गई जिसमें नाबालिक के साथ दुष्कर्म और फिर गर्भपात करने का आरोप लगाया गया. मुकेश के पिता का पंचायत कर रहे एक दबंग से जमीनी विवाह चल रहा था.
इस केस की जांच का जिम्मा बहेरा थाना के तत्कालीन ASI जावेद आलम को दिया गया. जांच पदाधिकारी को पता चल गया कि इस मामले में फर्जी केस किया गया है और प्रेमिका के प्रेमी को बचाने के लिए दूसरे युवक मुकेश के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है. इस संबंध में उसने अपने सीनियर अधिकारी से सलाह ली पर सीनियर अधिकारी ने शिकायत में दर्ज मुकेश के खिलाफ ही चार्जशीट दायर करने का निर्देश दिया, और सबूत के रूप में एक निजी क्लीनिक का फर्जी डॉक्यूमेंट लगाया गया जिसके बाद आरोपी मुकेश को निचली अदालत से 20 साल की सजा मिल गई.
इस मामले को लेकर दोषी पाए गए मुकेश ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही गृह विभाग, डीजीपी, मुख्य सचिव और मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर सीआईडी जांच की मांग, और फिर यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा. हाई कोर्ट में अपने शपथनामा में जांच पदाधिकारी जावेद आलम ने अपनी गलती स्वीकार की और सीनियर अधिकारियों के निर्देश का पालन करते हुए निर्दोष युवक के खिलाफ चार्जशीट दायर करने की बात कबूल कर ली, इसके बाद हाईकोर्ट ने दोषी मुकेश कुमार को इस केस से बरी करते हुए रिहा कर दिया.
मुकेश के हाई कोर्ट बरी होने के बाद परिवार और गांव वाले ने राहत की सांस ली है, वही इस मामले में फर्जी शिकायत करने वाले के साथ ही जांच पदाधिकारी और निर्दोष के खिलाफ चार्जशीट दायर करने का निर्देश देने वाले सीनियर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है.
इस तरह का केस और जांच पदाधिकारी एवं सीनियर पदाधिकारी का रवैया बिहार पुलिस पर एक धब्बा की तरह है, जिसको लेकर सरकार और पुलिस मुख्यालय के स्तर पर इस तरह की कार्रवाई होनी चाहिए जिससे की नजीर पेश की जाए और दूसरे किसी बेकसूर को इस तरह फर्जी केस के जाल में फंसा कर तंग और तबाह ना किया जाए.